मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

संघर्ष और वेदना


जीवन के अधिकाँश मार्ग पर वेदना का उपहार मिला
साथ चले संघर्ष  सदा  ही  अपमानों  का हार मिला
छोटी - छोटी भी खुशियाँ  ना सहन हुई थी काल को
जो करीब अपने थे उनसे पग - पग दुर्व्यवहार मिला

जो भी मिला था संघर्षों से काल को धकियाया था तब
जग देखा पर  अपने  पूछते  कैसे किया बताओ कब
अपनों के अविश्वासों  ने ही  मुझसे मुझको छीना था
वरना हम भी शिखर पे होते प्रश्न पूछता ना कोई अब

मातु पिता भाई पत्नी तक हर अवसर पर मुझे छला
और  दिखाते  रहे  जगत  को  चाहें मेरा सदा भला
सबसे अधिक यही तड़पाये जीवन भर बस भ्रमित किया
बाकी रिश्तों पर क्या लिक्खूँ, सबमें एक से एक कला

जीवन को संग्राम था समझा और महाभारत  निकला
मरते-मरते भाग्य  भरोसे अक्सर  ही  मैं बढ़ा  पला
निष्ठा, दृढ़ता के अस्त्रों संग विषम मार्ग पर बढ़ा रहा
भीगा बहुत दुखों के जल से साहस था सो नहीं  गला

निकट लक्ष्य के पहुँचे तो फिर अपनों का ही प्रहार हुआ
एक आह गूँजी नभ  भर  में दुःख उनका  आहार हुआ
हुआ पराजित लगा उन्हें था  हो  प्रसन्न  मद में झूमें
घायल था पर बढ़ा लक्ष्य पर निकट पहुँच  संहार किया


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८  

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