गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

ज़मीर क्या गया


ज़मीर  क्या  गया  कि ज़मीं  आसमान गया
मान की बात  क्या पूरा ही  स्वाभिमान गया

गिरना तो ठीक  मगर अपनी नज़र में गिरना
फिर तो ऐसा समझ कि जीने का सामान गया

जिसके  ख़ातिर  लड़े दुश्मन भी बेशुमार किये
वो ही  नाराज़ तो फिर जीने का अरमान गया

हो  भले  यार की महफ़िल बिना न्यौते न जा
ज़रा  भी  बेरुख़ी  हुई   कि   सम्मान  गया

कई दिन  ठहर  के लौटोगे  किसी के  घर से
सभी  घर  वाले  कहेंगे  चलो  मेहमान  गया



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com  

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