गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

आओ गाय के उर को टटोलें


आओ गाय के उर को टटोलें
पौधे भी कुछ  दिल की बोलें
पानी का भी  हाल  जान लें
आओ  जंगल – जंगल  डोलें

हवा  बहुत  ही  परेशान  है
तभी   आदमी    हैरान  है
हो प्रकृति का समाधान यदि
तभी सुरक्षित सबकी जान है  

गुमशुम  पर्वत   बेचारा  है
अन्न  रसायन  का मारा है
देसी  को  ऐसे   धकियाया
गोबर  दर - दर का मारा है

सारे  बदन में  जहर  घुल गया
उन्नति का जी नक़ाब खुल गया
जिस  देसी   को  थे  गरियाते
वही जीवन का बन ही पुल गया

पश्चिम देख के  भोग लिया
बड़ा  पछताए  जोग  लिया
पूरब देखे  मस्त  हुए  तब
पूरब का जब  योग  लिया

सूरज  पूरब  में  उगता है
पश्चिम में चुपके भगता है
पूरब तुम खुद को पहचानों
तुमसे सुंदर  जग लगता है

पूरब का  सूरज  है भारत
युगों युगों से है ये कार्यरत
प्रेम सिखाता है सहिष्णु ये
यह गंगा सा सबको तारत

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८    

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