शनिवार, 3 अगस्त 2019

माना कि तुम शरीफ हो


माना कि तुम शरीफ हो  अंदाज अल्हदा है
पर उसकी जिन्दी भी इक अच्छा नमूना है

निंदा कि या  प्रशंसा  अब दो ही रास्ते हैं
निष्पक्षता  नादानी  या  कह दूँ मूर्खता है

भूखों  मरना है तो  किसान ही रह जाओ
भरपूर  मजे  के लिए  तो  संसद बना है

बाज़ार के इस  दौर  में साहित्य की बातें
साहित्य  के  सम्राट का  ही जूता पता है

अन्नदाता जय किसान का नारा ही अर्थहीन
किसान तो  आज  भी  यहाँ पूस की रात है

छोड़ो   राजनीति   कहूँगा  तो बुरा  लगेगा
राजनीति  चौराहे  पर  नगरवधू की  बात है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८८
अणु डाक – पवनतिवारी@डाटामेल.भारत

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