बुधवार, 5 जून 2019

जाते - जाते हुए लौट आने लगे



जाते - जाते  हुए लौट  आने  लगे
भूलते   भूलते  याद  आने  लगे

झूठ  पे  झूठ  वो जाने कितने कहे
एक सच कहने  में पर  ज़माने गले

सच में मुँह मोड़ना कभी आसां नहीं
फ़क़त  ना  कहने में सौ बहाने लगे

इक नज़र क्या पड़ी वो फिसल ही गये
मुझको  पहली  नज़र  में दीवाने लगे

इस  मोहल्ले में जब से है देखा मुझे
आज - कल वो इधर आने-जाने लगे

हैं नशा क्या बला लड़कियाँ ऐ ख़ुदा
लड़के  बस  देखते  पगलाने  लगे

लोगों की एक फ़ितरत अज़ब पवन
फ़क़त  हाँ कहते ही आजमाने लगे 



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें