शनिवार, 15 जून 2019

कभी – कभी जब भीड़ बहुत हो जाती है


कभी – कभी जब भीड़ बहुत हो जाती है
दीवारों  मिलकर  बात  किया करता हूँ

कटती है दिन रात फ़कत गर कटती है
ऐसे  में  क्या फर्क कि जीता मरता हूँ

प्यार से कोई गलत भी कह दे सुन लेता हूँ
और  अनाड़ी  समझे  हैं कि  मैं डरता हूँ

हमें लपेटो मत जी अपनी जिद की अना में
फूटे   गुब्बारों   में  और  हवा  भरता  हूँ

फितरत  वैसे  दूजों  के  दुःख  हरता  हूँ
जिद  आने  पर  चरा  खेत भी चरता हूँ


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com


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