शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

ईर्ष्या, डाह, जलन, स्पर्धा

ईर्ष्या, डाह, जलन,  स्पर्धा
सहज स्वभाव मनुज का है
विपति विशाद में भ्राता के संग
सहज ही धर्म अनुज का है

धन से  धर्म धर्म से जीवन
स्वास्थ्य ही सर्वोत्तम धन है
सकल   मनोरथ  पूरे  होते
प्रभु में लगा  सहज  मन है

रूप, कुरूप  कोई  भी होवे
प्रेम सभी की अभिलाषा है
दुःख का मूल अपेक्षा होती
अपनों से  सबको आशा है

धर्म धर्म मिथ्या चिल्लाते
सदाचरण ही  परिभाषा है
जिन्हें नहीं विश्वास है जग में
वहीं  पनपती  निराशा है



पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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