मंगलवार, 8 जनवरी 2019

क्या कहें क्या ना कहें

क्या कहें क्या ना कहें अब क्या कहें
जिंदगी  हँसना  कि  रोना क्या कहें

प्रेम  जो  माँगे  समर्पण  हर  घड़ी
उसमें फिर पाना कि खोना क्या कहें

गृह युद्ध के जब बढ़  रहे आसार हों
ऐसे  में  जगना कि सोना क्या कहें

जब बुझानी आग  थी तब चुप रहे
बाद फिर रोना कि धोना क्या कहें

अर्थ से पहले  भी  उसका  अर्थ था
अब उसे मद या कि टोना क्या कहें

पवन तिवारी 
संवाद - 7718080978
अणु डाक - poetpawan50@gmail.com 

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