बुधवार, 19 दिसंबर 2018

प्रेम में जो भी हैं जितने समीप हैं


प्रेम  में जो भी हैं जितने समीप हैं
सब  प्रेम  पुंज  हैं  सब प्रेम दीप हैं
राग के पूजकों को कहें भी तो क्या
मोतियों  से  भरे   हुए प्रेम  सीप हैं

जाति और वर्ण में ये तो अपवाद हैं
प्रेम  के  श्लोक  के सुघर अनुवाद हैं
सच्ची  मानवता  के हैं द्योतक यही
बैर , इर्ष्या  के  ये सच्चे प्रतिवाद हैं

वंश  के  बैर  को  प्रेम   ने  मारा  है
घृणा  को  प्रेम  के  पुण्य  ने तारा है
प्रेम के मन्त्र को याद जिसने किया
उसकी मुट्ठी में तो फिर जग सारा है

इसलिए  प्रेम  पथ  का करें  अनुसरण
प्रेम  के  दीप  का  हम करें अनुकरण
सारे दुःख सुख में खुद ही बदल जायेंगे
आओ  मिलकर चलें प्रेम की हम शरण

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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