सोमवार, 17 दिसंबर 2018

हम जो जीते हैं


हम जो जीते हैं हम ही जाने हैं
लोग  अपने  सुहाना  जाने हैं
कितने  कैसे  कहाँ  से टूटे हैं
हँसे हैं हम पर सच जो जाने हैं

हर  घड़ी  पर  सवाल आया है
एक  सुलझा  तो दूजा आया है
दुखों  के  प्रश्न  आए हैं इतने
भूला सब, गया , कौन आया है

कहने को अपना मगर संगदिल है
फिर भी लगता है पास मंजिल है
यह जो साहस  का हुनर पाया है
गम में भी रखे जो  जिंदादिल है

हर  कोई  अपना अपना देख रहा
सबको शक की नजर से देख रहा
कोई  शक की दवा  न है जग में
यही  जो  दुख के बीज बो है रहा

कहो ना दुख यूँ ही सुनते जाओ
बने  जो  भी  उसे करते जाओ
बात  बन जाएगी करते - करते
कर्म  की  राह  पर बढ़ते जाओ

नहीं  बेबात   रोना - धोना
भर दो साहस बस कोना कोना
जिंदगी लौट  के करके आएगी
करेगी फिर तुम्हें चोना – मोना


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


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