गुरुवार, 22 नवंबर 2018

जब तक स्वार्थ रहा मुझसे


















































जब  तक स्वार्थ  रहा मुझसे
तब तक वे  कितने अच्छे थे
बात-बात पर हाँ जी – हाँ जी
जाने   कितने   सच्चे   थे

घड़ी - घड़ी पर हाल – चाल
ख़याल  रखना  कहते   थे 
ऊँचा स्वर भी बोल दिया तो
हँस – हँस  करके  सहते थे

हम नहीं उनके वो न हमारे
निकला काम बदल गये वो
हाल-चाल को कौन कहे अब
मुड़कर   नहीं   देखते  वो

सारे  वादे   भूल  गये  थे
हम  क्या  हैं  वो भूल गये
नैतिकता  की  हत्या  करके
धूर्त  रूप  में  वो  आ गये

करुणा का हट गया मुखौटा
लगा  देख  जैसे  मुँहझौंसा
कविताई  के  रंग  उड़ गये
झूठे   अनुबंधों  सा  लौटा

अच्छा नाम रखा भल तूनें
अच्छे  नहीं  रहे गुण तेरे
तू भी निकला सबके जैसा
मर  गये रिश्ते तेरे - मेरे

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक -  poetpawan50@gmail.com




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