शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

अपने जीवन का मैं ही उपन्यास हूँ


अपने  जीवन  का मैं ही उपन्यास हूँ
मैं  लिखा  ना  गया  यूँ अनायास हूँ
खूब अपमान ठोकर  बहुत कुछ मिला
अपनी सारी व्यथाओं  का मैं व्यास हूँ


खुद ही खुद से  यहाँ तक मैं खुद आया हूँ
गम मिला अपनों से खुशियां खुद लाया हूँ
कोई  किसको   सफल  होने  देता  नहीं
अपने  हिस्से  का  खुद छीन कर पाया हूँ


इसलिए  निंदा  से  मैं तनिक ना डरा
बस  बढ़ता  चला  पथ पर  आगे बढ़ा
रोके,  टोके  बहुत, और डराये भी कुछ
पर बढ़ा  मैं  सफलता  के मानक गढ़ा


सबकी निंदा ने ही मुझको जिंदा किया
काम जो  भी किया बस चुनिंदा किया
फिर  उड़ा  पूरे दम और साहस से मैं
जीता फिर जिन्दगी  का परिंदा किया


जब  तलक  चुप रहा सबने दोषी कहा
सबके  ताने  सुना, सबकी  बातें  सहा
धैर्य जब चुक गया और लब खुल गया
सर  झुके  सबके  कोई  न उत्तर रहा


पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक- poetpawan50@gmail.com


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें