शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2018

मौकापरस्त



सारे विश्वास स्वार्थ की बलि चढ़ गये
दोस्त सब दोष मे रे ही सर मढ़ गये
सबको   अपने  हित  सर्वोपरि  लगे
जाने  कितने  बहाने  यूँ ही गढ़ गए

जिनका दावा था सबसे निकट मेरे हैं
जो कहें हर कदम , साथ हम तेरे हैं
साथ देने का सच में समय आया तो
वे  दिखे  ना  कहीं  गैरों  के घेरे हैं

थोड़े  मशहूर  जब हम यूँ ही हो गये
उनकी आँखों के फिर नूर हम हो गये
मंडराने  लगे   पास  गिद्धों  सा  वे
नोचने  के  लिए साथ  फिर हो गये  

खेल अपने समझ में भी आने लगा
दौर वो नजरों में आने - जाने लगा
फिर तो नज़रों से वो बस फिसलते गये
दौर मेरा  सुखद  और  आने  लगा

कुछ बचे थे , बुरे  दौर में साथी जो
यूँ संभाले थे मुझको समझ थाती जो
ऐसों को साथ ले मैं चला फिर सफर
यूँ लगा जल पड़ी थी बुझी बाती जो

पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com

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