छात्र हूँ मैं मेरी तुम विद्यालय
तुम आयी गृह हुआ
देवालय
मेरे ह्रदय की तुम देवांगना
पावन हो गया उर का आलय
जितने शोक थे असमय
मर गये
द्वेष सभी तत्क्षण
मरघट गये
थे जीवन में जो अवरोधक
तुम आयी सब अपने घर
गये
हर्ष ने डेरा डाला
घर में
सारे माणिक जैसे कर
में
महादेव की कृपा है
लगती
जैसे पाया हूँ
तुम्हें वर में
मेरी भी कुछ हस्ती
हो गयी
अच्छी सी गिरहस्ती हो गयी
बरबस गीत उठे अधरों पर
प्रभु की कृपा थी
वृष्टि हो गयी
पवन तिवारी
संवाद – ७७१८०८०९७८
अणु डाक – poetpawan50@gmail.com
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