सोमवार, 2 जुलाई 2018

शब्द

दुख मिले इतने कि खुद को भूल बैठा
जिंदगी ने दिल को मेरे खूब ऐंठा
क्या करूँ , ख़ुद को संभालूँ कैसे मैं
धीरे से तब भाषा के घर में मैं पैठा


देखते ही उसने दुत्कारा मुझे
कैसे आया किसने भेजा है तुझे
उसके सभासद साथ में चिल्ला उठे
दौड़े सब देने लगे धक्का मुझे

मैं बहुत ही गिड़गिड़ाया सामने उसके
अपने घावों को दिखाया सामने सबके
तरस ख़ाकर भाषा ने देखा मुझे
शब्द का टुकड़ा थमाया घृणा से जबके

दुख भरे उन शब्दों में अपने सभी
लेख कविता और कहानी में कभी
जो बहुत थे काटते रिसते भी थे
गीत में ढल के वे दुख आये सभी

पढ़के इनको दुनिया खुश होती बहुत
क्या मैं करता , दुख ही मेरे थे बहुत
खुश हूँ दुख भी मेरे सबके काम आए
शब्द ने मशहूर कर दिया है बहुत

शब्द तुमको बार - बार प्रणाम है
तुम ही हो, जो आज मेरा नाम है
दुख मेरे सब अपने अंदर पी लिए
ब्रम्ह हो शिव सा तुम्हारा काम है

पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com
संपर्क - 7718080979

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