शुक्रवार, 25 मई 2018

तेरे उर का पटुक है उड़ा जा रहा


तेरे उर का पटुक है उड़ा जा रहा 
चन्द्रिका सा तेरा रंग बढ़ा जा रहा 
हुआ जाता है पंकज सा यौवन तेरा
देख कर मेरा अंतस बहा जा रहा

अधरों से मधुरिमा के जो स्वर फूटे हैं
जाने कितने ही शिष्टों के हिय लूटे हैं
अलकों से पलकों तक छाई जो रम्यता
देख कितनों के उन्मत्त सर टूटे हैं

तेरा यौवन है ऋतुओं में मधुमास सा
रूप तेरा शची मंजुता पाश सा
तुझको सुभगा, सुनयना या सुमुखी कहूँ
तेरा प्रति अंक अनुपम आभास सा

चलना चाहूँ तेरे संग मैं प्रेम पथ
पथ से चलके तेरे द्वार पहुंचे ये रथ
मैं तेरा तूँ मेरी हो सदा के लिए
है प्रिये अपना इतना सा बस मनोरथ



पवन तिवारी

सम्पर्क ७७१८०८०९७८

poetpawan502gmail.com    


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