सोमवार, 30 अप्रैल 2018

राग अनुराग तुझ बिन अधूरे लगे

























राग अनुराग तुझ बिन अधूरे लगे
दृष्टि में अपने ही हम न पूरे लगे
प्रेम जीवन की ऐसी हो अमृत प्रिये
बिन तुम्हारे  धरा व्योम सूने लगे

तुम जो आयी अयन सुरभिमय हो गया
उर का उपवन बड़ा  उल्लसित हो गया
बोल  फूटे  नहीं  अमित   आह्लाद से
सारी  वान्छाओं का मन मुदित हो गया

प्रेम  सारे  अभावों  पे  छा जाता है
दुःख  में भी हर्ष के पुष्प ले आता है
सूने आँगन में बरखा जो की प्रेम की
एक मैं ही नहीं, सारा  घर  गाता हैं

बिन  प्रिये प्रेम की कल्पना कोरी है
सारे  अवसादों की तूँ दवा  गोरी है
आदमी  आदमी हो  है सकता तभी
उसके जीवन में जब प्रेम की छोरी है


पवन तिवारी

अणुडाक -   poetpawan50@gmail.com
संपर्क -     7718080978 

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