मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

जीवन के सपनों में भटकूँ ऐसा बंजारा हूँ


































जीवन के सपनों में भटकूँ  ऐसा बंजारा हूँ
एक अकेला भोला ख़ुद ही ख़ुद का सहारा हूँ
ना माँगू ना कुछ चाहूँ इस समाज जग से
फिर भी ये मुझको कहते हैं मैं  आवारा हूँ

अपने मन का, अपने दिल का राज दुलारा हूँ
थोड़ा  खुद, थोड़ा  हालातों,  का मैं  मारा हूँ
अपने दिल की कर पाता हूँ मिली बड़ी खुशियाँ
अपनी  शर्तों  पर  जीता  मैं  नहीं बेचारा हूँ    

आवारा , बंजारा हूँ  मैं  परिवेश  का  मारा हूँ 
गिला न शिकवा मनमर्जी का खुद का प्यारा हूँ 
अपनी राह चलूँ फिर भी कमबख्त ये जग जलता  
तभी  तो कहता हूँ जग में  मैं सबसे न्यारा हूँ



पवन तिवारी
सम्पर्क – ७७१८०८०९७८
poetpawan50@gmail.com

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