रविवार, 31 दिसंबर 2017

हिन्दी के लाल





मैथिली,दिनकर और निराला
तेवर श्यामनारायण वाला
देशभक्ति की जली है ज्वाला
हिंदी का बेटा मतवाला

पंत सुकोमल शुक्ल,द्विवेदी
हिंदी की यह आत्मा वेदी
बच्चन जहां रचे मधुशाला
गाएँ जन-जन हाला – प्याला

तुलसी, सूर, कबीर, जहां हैं
भक्तिभाव की छांव वहां है
प्रेमचन्द, अज्ञेय जहां हैं
धरती, अंबर नेह वहां है

जयशंकर, जैनेंद्र, भगवती
श्रीलाल, माखनलाल जहां हैं
बुद्धि, स्नेह और व्यंग, वात्सल्य
देश प्रेम का घोष वहां है

महादेवी, सुभद्रा, खुसरो
जायसी और रसखान है बिचरों
प्रेम, वीरता, भक्ति है अनुपम
साहित्य का है अद्भुत संगम

जहां त्रिलोचन, धूमिल भी हैं
मुक्तिबोध, नागार्जुन भी हैं
जन-जन के पीड़ा का क्रंदन
आमजनों के दुख का वंदन

ऐसे में सांकृत्यायन को
भारतेंदु और बालकृष्ण को
हिंदी के गौरव ललाट को
हिंदी के अद्भुत लाल को


शमशेर बहादुर, अमृत लाल
सत्यनारायण, रामकुमार
हिंदी सेवी हिंदी के लाल
काटे प्रतिरोधों के जाल

एक वियोगी हरि भी थे
दूसरे राधिकारमण भी थे
राही मासूम रजा आये
दो दो नावों पर लहराए

हिंदी के पुत्र दयाल हुए
एक रामेश्वर एक सर्वेश्वर
दो जोशी भी प्रतिभाशाली
एक इलाचंद्र और एक शेखर

साहित्य भवानी एक शिवानी
उनका लेखन सुघड़ कहानी
एक गुलाब, गोविंद एक
हरेकृष्ण और जगदीश चंद्र

एक प्रेमघन एक पद्माकर
शर्मा नरेंद्र रामेश्वर शुक्ल
यह भी हिंदी के थाती हैं
हिंदी की कोमल बाती हैं

एक लोहिया थे,एक मार्कंडेय
दोनों गंवई , दोनो ज्ञानी
हिन्दी देवी के परम सेवी
दोनों का नहीं कोई सानी

एक हिमांशु , एक अटल
हिन्दी इनमें बहती कल-कल
दो ज्ञान भी हैं हिन्दी के पुत्र
दोनों ज्ञानी दोनों ही मित्र

काका काललेकर और शेवड़े
तथा माचवे याद हैं क्या
ये हिन्दी के सुन्दर झूले

इनको भूलें तो कैसे भूलें

कैसे भूलें भीष्म साहनी
और फणीश्वरनाथ रेणु को
गांव खेत खलिहान छाँव को
हिंदी की इस कठिन नाव को

हिंदी चित्रपटों के पट पर
गीत लिखे संगीत के तट
पर हिंदी के स्नेहिल दो दीप
जन - मन के शैलेंद्र, प्रदीप


नेपाली, नीरज, दुष्यंत हैं
अश्क,उग्र तो शिवमंगल हैं
गान गीत वेदना स्वर है
दुख आवेश का हिंदी स्वर है

निर्मल वर्मा, धर्मवीर को  
सुदर्शन और गुलेरी को
इनकी रचना के क्या कहने
हिन्दी के ये सच्चे गहने
  
एक की भाषा विश्व जगत की  
एक पत्र और नाटक की
एक भाव दूजा संवेदना
और कहां  ऐसी वेदना  

गया प्रसाद, द्वारिका को भी
भूषण और बिहारी को भी
ऐसे में यशपाल व मोहन
वृंदावन, परसाई, सोहन  

रंग बिरंगे पुष्प हैं ये
कई गुणों के वैद्य हैं ये  
हिंदी के ये भुज विशाल हैं
हिंदी के सच्चे लाल हैं

चतुरसेन जहां कमलेश्वर भी  
विष्णु प्रभाकर, दयानंद भी
शरद और केदार, नामवर
केशव और देवकीनंदन  

स्व में एक नक्षत्र सभी हैं
हिंदी के सारथी सभी हैं
केशव,दयानन्द से बच्चे
हिन्दी इन्हें पाने को तरसे

श्रद्धा राम, रहीम व मीरा  
गिरिजाकुमार, भवानी मिश्रा
एक युग के ये साक्षी हैं
दूजे युग के ये नाविक हैं

रांगेय राघव और कालिया
रामविलास और नासिरा  
विद्या और नरेंद्र कोहली  
जिन की भाषा मन मोह ली  

सियाराम की बात निराली
पदुमलाल की भाषा प्यारी
यात्री और गिरिराज, वजाहत
भैरव, नवीन और नारायण

हिंदी के सुपुत्र ये लायक
रचे कई हिन्दी के नायक
हिन्दी का ये मान बढ़ाये
हिन्दी के ये सिंह शावक

मन्नू, उषा, कृष्णा सोबती
हिंदी की देवियां मोहती
अलग-अलग है चाल निराली
इनके शब्दकी बगिया प्यारी

चित्रा, रामवृक्ष, राजेन्द्र
काशीनाथ, प्रभाकर,कौशिक  
शिव पूजन, रघुवीर सहाय
मटियानी हिंदी नरेश

अमरकांत की अमर कथाएं
मिश्र बंधु की बोली-बानी
स्वाहा करें मनोहर श्याम  
कुंवर हैं वजाश्रवा के नाम


नरोत्तम और बालमुकुंद
मन मोहन है छंद, निबंध
एक ने कृष्ण सुदामा गहे
दूजे ने पत्र व गद्य रचे

गोरख और गोपाल शरण
भारत भूषण और घनानंद  
इनकी कविता के अलग लोक  
हिंदी के पुत्र विरले ये लोग

चंद्वरदाई और जगनिक
इतिहास को काव्य बना बैठे
जन मन के जीवन में पैठे
गहरे तक जीवन में बैठे

जानकी और रत्नाकर भी
तो राजकमल और रामदरश
शिवप्रसाद और रामनरेश
श्रीकांत और शाही भी

भूले भी तो,  कैसे भूले ?
हिंदी के रत्न हिंदी के लाल
यह हिंदी के नभ मंडल के
कुछ गिनती के हैं सूर्य,शशि

जाने कितने अगणित हैं और
उदगण कितने व असंख्य बौर
ऐसी हिंदी का वंदन है
मन से हिंदी अभिनंदन है


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978

poetpawan50@gmail.co







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