शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

कोई भी हो किसी का घर आसमां नहीं - ग़ज़ल


कोई भी हो किसी का घर आसमां नहीं
हो सकता गुज़ारा मगर बिन जमी नहीं

माना कि इस शहर में नये आदमी हैं हम
लेकिन ये सच नहीं कि यहाँ आदमी नहीं

यूँ महफिलों में तो मिलते हैं कई लोग
सबसे हो जाए दोस्ती ये लाजमी नहीं

मिलते हैं जिन्दगी में अलीम बहुत से
होते मगर व्यवहार सबके काजमी नहीं

कुछ लोग जिन्दगी में टूटे हैं इस कदर
गम होके भी दृग में आती नहीं नमी

देखेंगे जो इतिहास तो शर्मिन्दा होएंगे
बहुतेरे अना वाले हम ही हमी नहीं  

जो लोग करें नेकी ‘पवन’ बेहिसाब के
ऐसों की बरकतों में आती कमी नहीं


पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978


poetpawan50@gmail.com

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