गुरुवार, 9 नवंबर 2017

लोग लिख नहीं रहे वे तो बस रच रहे


























लोग लिख नहीं रहे 
वे तो बस रच रहे
लीप रहे पोत रहे
कविता, कहानी, उपन्यास
गज़ल और गीत के नाम से
रच रहे, गांज रहे
यौवन की विकृति कालिख
कामुकता,हिंसा, राजनीति
पक्ष-विपक्ष, प्रेम के नाम से
स्त्री के शरीर का बारीक विच्छेदन
किसी की अतिरेक प्रशंसा में
खर्च कर रहे सफ़ेद पन्ने
किसी की निंदा में
काले हो रहे पन्ने
नहीं हो रही आलोचना कहीं भी
मूल्यांकन को चिढ़ा रहे
प्रशंसा और निंदा मिलकर
बरस रहे पुरस्कार
मेहरबान अकादमियाँ
होकर प्रफुल्लित ढेर सा
रचते हैं कामुकता, निंदा
और भी ऐसा ही लपलपाता बहुत कुछ
जो कुछ अघाये खाये लोगों की
आँखों को ललचाता
ऐसे में कौन लिखेगा
श्रम की महत्ता
उसका अवमूल्यन
भूख,प्रताड़ना,
असमानता का घाव
सामाजिक पिछड़ापन
बेरोजगारी के दुष्परिणाम
आम आदमी की वेदना
युवाओं को सही रास्ता कौन बतायेगा
साहित्य के नाम पर
रची जा रही ये निंदा
प्रशंसा , कामुकता दे पायेगी
देश और समाज को
कोई भविष्य का सही रास्ता
सोंचता हूँ रह-रह कर

पवन तिवारी
सम्पर्क – 7718080978
poetpawan50@gmail.com


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