सोमवार, 4 सितंबर 2017

जब दुर्बल भाग्य रहे









जब दुर्बल भाग्य रहे 
तब यत्न न काम करे 
सब तरफ से ना ही ना 
कोई भूल के हाँ न कहे

बनती उम्मीदें टूटें
हाथों से हाथ छूटें
कुछ समझ में ये ना 
बिन बात के अपने रूठे 

जिसके भी द्वार जाएँ
उसे रोता हुआ ही पायें 
अपना कुछ कहने से पहले
दुःख अपना सुना वो जाए

कोशिश, तिकड़म सारे असफल 
उम्मीदों के बिखरे सब फल 
हो विवश रखें माथे पे हाथ 
नयनों से छलकता केवल जल

ऐसे में धर्म,धैर्य का बल 
करतब न करे फिर कोई छल 
तब त्राहिमाम प्रभु शरण गहें
फिर वही उबारें नभ,जल,थल 

पवन तिवारी 
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com  

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