रविवार, 6 अगस्त 2017

जेठ की दोपहर में भटक था रहा



जेठ की दोपहर में भटक था रहा
था पसीनें की बूंदों से भीगा ये तन
कि तभी तुम पे मेरी नज़र जा पड़ी
आके यूँ ढक गया,धूप को जैसे घन

मन में हलचल हुई प्रणय सी वेदना
जैसे मिल जाएगा प्रेम का मुझको धन
खो गया भरी दोपहरी ही स्वप्न में
बेख़बर धूप में जल गया मेरा तन

जाने तुम कब गई कि पता ना चला
स्वप्न टूटा तो सर कर रहा टन-टन
तब से हर दोपहर मैं यहीं आता हूँ
तुम बिन लगता नहीं है कहीं मेरा मन

प्रणय एहसास ही तुमसे पहला हुआ
झूमा था मेरा मन,प्रेम की लहर बन
इस ह्रदय को स्पंदित तुम्ही ने किया
तुमको ही है समर्पित ये तन और मन

 अपने भी प्रेम का एक संगम बने
यमुना सा तेरा तन गंगा सा मेरा मन
प्रेम पावन मेरा तू मिले ना मिले
तू सदा खुश रहे इतना चाहे ये मन 
  
पवन तिवारी

सम्पर्क – 7718080978/9029296907


poetpawan50@gmail.com

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