मंगलवार, 18 जुलाई 2017

प्रेम रोग





होंठ का ज़ादू तेरा तकता इधर 
हो गया जादू मैं अब जाऊं किधर 
तेरे अधरों पर थिरकना चाहता हूँ 
चाहतें लेकर ये जाऊं मैं किधर 

चाल में तेरे भी इक संगीत है 
कमर का बलखाना भी इक गीत है 
पैजनी से स्वर निकलते जो तेरे 
दिल कहे कि थाम लो ये प्रीत है 

उम्र है आवारगी की, प्यार की 
है जरूरत तुमको सच्चे प्यार की
वरना तुम बर्बाद होके भटकोगे
तुमको है दरकार सच्चे प्यार की 

वो दिखी जो,वो मिली जो,ये भी कुछ संयोग है 
कौन जाने प्रेम होने का तुम्हारा योग है 
हम सफ़र बनाने का मौक़ा है मिला 
मार दो चौका अजब ये रोग है  

पवन तिवारी 
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com 

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