गुरुवार, 22 जून 2017

गांव नहीं अब गांव रह गया























गांव नहीं अब गांव रह गया
गांव का केवल नाम रह गया
पेट की खातिर लौंडे भागे
बूढ़ों का आवास रह गया

 गांव में जाकर गांव ढूंढना
नादानी का काम रह गया
गांव को तो शहर खा गए
गांव में अपमान रह गया

जिसको शहर की राह न सूझी
मजबूरी में ही गांव रह गया
गांव में जाकर गांव को देखो
गांव तो बस बेजान रह गया

 हल जुवाठा बैल गया
कोल्हू, छप्पर कुआँ गया
भाई भी अब गैर हो गया
बगल में ही पटीदार हो गया

सब मतलब का यार हो गया
रिश्तों का व्यापार हो गया
कभी तो देखो गांव में जाकर
गांव भी अब परेशान हो गया

 बैल बेंचकर ट्रैक्टर लाया
नाच गई आर्केस्ट्रा लाया
बाजे को कोई पूछे ना
सब पूछे हैं डीजे लाया

गांव शहर के क्लोन हो गए
अधकचरे अरमान हो गए
गांव में जाकर गांव से मिलना
ठाले बैठे काम हो गए

गाय भैंस की हुई विदाई
गोबर कहां से होगा भाई
गोबर का कुछ काम नहीं है
डाई यूरिया से होय बुवाई

 कविता में बड़ा सुंदर गांव
गाँव में जाकर देखो गाँव
कुछ दिन रह कर मजा भी ले लो
फिर पूछूंगा कैसा गांव

यह मत सोचो बहुत हैं सीधे
होती है हर जगह लड़ाई
पेड़ की खातिर मेड़ की खातिर
हिस्सा बखरा खेत की खातिर

माई के गहना के खातिर
गोयड़ वाले खेत के खातिर
बंटवारा जब होवे लागे
हंडा लोटा बटुली की खातिर

 लाठी छोड़ सब भये आधुनिक
करते हैं बंदूक से खातिर
कहीं न ससुराल हमका ठग ले
होय लड़ाई ढेर की खातिर

शहर में रहकर गांव जो लिखते
वे हर दिन और शाम हैं बिकते
बेइज्जत होकर गांव से भागे
वही अब सुंदर गांव है लिखते

गांव तो अब वीरान हो गए
घर जो थे मकान हो गए
कविता वाले भोले गांव
वहां भी अब शैतान हो गए

 सब सीधे सच्चे ही नहीं हैं
बहुत से अब बेईमान हो गए
ठेकेदार को कोसने वाले
ही अब ठेकेदार हो गए

सड़क किनारे खेत थे जितने
सब के सब बाजार हो गए
खादों वाला अनाज खाकर
गांव भी अब बीमार हो गए

खूब हो रही पैदावार
डाई यूरिया का है प्यार
बीमारों की बड़ी तादाद
बढ़ गया डॉक्टर का व्यापार

शहर में आकर गांव की बातें खूब करते हैं
ऐसा लगता है जैसे यह गांव पे मरते हैं
मां का जब भी फोन है आता अगले महीने आते हैं
10 दिन और रुक जाओ सुनकर कुढ़ जाते हैं

सच तो यह है गांव नहीं अब प्यारा है
गांव भी देखो हालातों का मारा है
चाहता है घर गांव गांव ही बना रहे

दे दो फिर रोजगार गांव रोजगार का मारा है

पवन तिवारी 
सम्पर्क -7718080978
poetpawan50@gmail.com

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