मंगलवार, 20 जून 2017

याद तुम्हारी बहुत आती है



याद तुम्हारी बहुत आती है......

     
रहूँ अकेला जब भी मैं
अपने अकेलेपन में सोचूं
मेरा जिया मुझसे ही भागे
बैठे-ठाले सोचा करता
कौन होता जो ऐसा करता
कौन होता जो वैसा करता
साथ बैठ मेरे बतियाता
घर तक साथ मेरे वो आता
कंधे पर थपकी दे कहता
कुछ मत सोचो मैं जो हूं ना
ऐसे में लब खुले नहीं बस

याद तुम्हारी बहुत आती है
      २
जब कोई सपना टूट है जाता
मन मेरा बोझिल हो जाता
हारूंगा क्या, डर लग जाता
साहस भी फिर कम पड़ जाता
चारों ओर नजर दौड़े पर
कोई नजर नहीं है आता
एक सहारे की तलाश में
जीवन के मध्यम आस में
मन भटके जैसे आवारा
याद करूं फिर कौन हमारा
मन घूमें जैसे बंजारा
ऐसे में बस यही कहूं मैं

याद तुम्हारी बहुत आती है
       ३
जो जीवन अच्छा लगता था
अब वह बस लंबा लगता है
ख्वाब सुहाने लगते थे जो
अब तो बस फीके लगते हैं
एक अकेला ऊब गया हूं
जैसे मैं अब बीत गया हूं
जीवन नीरस सा लगता है
सब जग सूना सा लगता है
कौन भरेगा फिर से रंग
जीने की फिर जगे उमंग
एक ही शक्ल नजर आती है
ऐसे में मुझको बस केवल

याद तुम्हारी बहुत आती है
     
कभी-कभी एकाकीपन से
छुटकारा मिल जाता है
दिन में भी बैठे - बैठे
जब ख्वाब तुम्हारा जाता है
फिर घूमूँ ख्वाबों में खूब
गलबहियाँ ले मौजूँ खूब
सारे दुखों को फेंक के मैं
गाऊँ संग तुम्हारे गीत
ध्यान जो टूटे ख़्वाब जो टूटे
उम्मीदों की आस जो टूटे
आशाओं का साथ जो छूटे

याद तुम्हारी बहुत आती है
              
 तुम क्या गई कि जीवन ही चला गया
खुशियों का था एक पिटारा चला गया
ख्वाब बिना पानी ही मर गए
सारे रंग भी हो गए काले
सारे भोजन बासी हो गए
मुंह में जाते नहीं निवाले
बैठे एकटक आसमान देखता
चुका कहां मैं मुरलीवाले
किसका दोष किसे मैं दूँ
किस्मत का या खुद को कोसूँ
आंसू है झरते हैं झर-झर बस

याद तुम्हारी बहुत आती है
              
जहां भी हो बस आ जाओ तुम
बस थोड़े से बचे दिन मेरे
तुम आओ तो दिन हों हमारे
रात को भी मैं मना ही लूंगा
प्यार तुम्हें भरपूर मैं दूँगा
खुशियों की औकात ही क्या फिर
वो भी हो जाएंगी हमारी
दिन हमारा रात हमारी
फिर सारी कायनात हमारी
यादों में बस याद तुम्हारी
कुछ नहीं भाता है अब तो बस

याद तुम्हारी बहुत आती है
             
 एक बार तुमसे मिल पाऊं
मिलकर तुमको गले लगाऊँ
सारा दुखड़ा तुम्हें सुनाऊँ
जी अपना हल्का कर पाऊं
तुम बिन जिया, जिया कैसे मैं
मैं सारा वृत्तांत सुनाऊँ
मिले तसल्ली मन को मेरे
खंडित हो सब भ्रम के फेरे
सारा बोझ उतार जो पाऊं
फिर मैं शांत चित्त हो जाऊं
गोद में रख के सर मैं तुम्हारे
चिर निद्रा में मैं सो जाऊं
ऐसे विचलन के क्षण में बस

याद तुम्हारी बहुत आती है


 पवन तिवारी
poetpawan50@gmail.com

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