शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

परी हो या तुम परियों की रानी हो















परी हो या तुम परियों की रानी हो
ख्वाबों में आने वाली तुम नई कहानी हो
अधर तुम्हारे हैं गुलाब की पंखुड़ियाँ
नैनों में बसती हैं जादूगरनियाँ
खूबसूरती की तुम चढ़ी जवाने हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

स्त्री हो या कविता का तुम श्रृंगार हो
श्लेष,यमक,अनुप्रास कौन सा अलंकार हो
दुःख में भी तुम्हे देख के हुलसित हो जाए मन
रोम-रोम खिल उठे सिहर उठे सारा तन
शची हो या तुम और कोई तुम क्या हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

केशों को झटको तो घटा घिर आये
चाल देखकर हिरनी भी शरमा जाए 
तेरी कटि के लचक का भी क्या कहना
तेरा इक-इक अंग सुनहरा सा गहना
क्या सच में इस जग की रानी हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

अभी तक हो सुरक्षित खुसी है मुझको
जग है बेमुरव्वत इसका डर मुझको
ये हंसी ये खुशबू बिखेरती तुम रहना
बस इतना सा तुमसे मेरा है कहना
मीरा सी पावन लगती दीवानी हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

ये तुम्हारी काया सुगंधित मलय है
बाँह तुम्हारी सुन्दर सी रेशममय है
चेहरा तुम्हारा प्रात का सूरज है
नयन तुम्हारा जैसे जलज है
सूर की तुम ब्रज या तुलसी की अवधी हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

जब लब खोलो निकले छंद सवैया
देख के तुमको हो न जाऊं गवैया
इस हद तक मई तुम पर फ़िदा हो गया हूँ
खुद की सुध नहीं है दीवाना हो गया हूँ
तुम क्या काम देवी रति हो

परी हो या तुम परियों की रानी हो

poetpawan50@gmail.com

सम्पर्क -7718080978

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