बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

काम-लोलुप



रूप और देह  की लालसा है जिन्हें
प्रेम खुद उनसे मिलना नहीं चाहता
प्रेम   श्रद्धा  समर्पण है  परमात्मा
रूप  की  लालसा  ये  नहीं चाहता


रूप यौवन में खिंचकर चला आता जो
घर के यौवन  से मिलना नहीं चाहता
रूप  यौवन की  माया है  ऐसी गज़ब
कोई  फंसकर  निकलना  नहीं चाहता


काम सुख - काम लोलुप  सदा चाहता
भेद  उसका  खुले  वो  नहीं  चाहता
है  वो  शादी  शुदा  बाप भी है मगर
प्रेमिका  को   बताना   नहीं  चाहता


हर  परायी    को     पाने    का      जी       चाहता
नैन     उससे     फँसाने   को    जी   चाहता
कोठे    पे    छुप - छुपाते   हैं  जाते   सभी
कोई    घर   उसको   लाना  नहीं  चाहता


एक मुक्तक 


बात नैतिकता की करते हैं जो सदा 
उनके घर जाइए पोल खुल जाएगा 
नगरवधुओं को जो तंज देता सदा 
जाइए कोठे पे वो भी मिल जाएगा


पवन तिवारी 
poetpawan50@gmail.com
 सम्पर्क - 7718080978


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