रविवार, 4 सितंबर 2016

जिन्दा होके भी नहीं जिन्दा हूँ !

जिन्दा होके भी नहीं जिन्दा हूँ.
 पर कटा जिसका वो परिंदा हूँ .
 सच जो कहने की मुझे आदत थी.
 इसलिए ही नहीं शर्मिंदा हूँ.

मैं नहीं चाहता मशहूर होना .

मेरी ख्वाहिश नहीं खुर्शीद होना.
मेरी इतनी है राम से विनती
मेरी पहचान हो आदमी होना


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें