बिना किसी भूमिका के आज मैं लवकेश मिश्रा की बात करूंगा यह भी एक छात्र ही था . जिसनें पिछले दिनों लखनऊ के BNCET महाविद्यालय के एचआर डिपार्टमेंट की प्रताड़ना के चलते आत्महत्या कर ली. उसने बाकायदा अपने सुसाइड नोट में लिखा कि क्यों वह आत्महत्या कर रहा है, फिर उसे इन्साफ क्यों नहीं ?
क्या यह पीड़ित नहीं था ? क्या इसके प्रति समाज के नेताओं की, बुद्धिजीवियों की , समाज के कथित ठेकेदार मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. इसकी जान की कोई कीमत नहीं है, सिर्फ इसलिए कि वो सवर्ण था. यह सवाल है क्या सवर्ण मनुष्य नहीं होते. उनमें जीवन नहीं होता . उनमें अभाव नहीं होता , उनके वोट की कीमत नहीं होती या फिर वे अपनी कीमत नहीं समझा पा रहे, क्या सवर्ण वोट बैंक नहीं बन पा रहे हैं या सवर्ण ही सवर्ण समाज के दुश्मन हैं इस बारे में सोचने की आवश्यकता है लवकेश मिश्रा की आत्महत्या का मामला राजनीतिक गलियारों, विधानसभाओं, लोकसभा के निचले और उच्च सदन में कहीं भी उस तरह से नहीं सुनाई दिया या यूं कहें कि सुनाई ही नहीं दिया, जिस तरह से रोहित वेमुला का मुद्दा चारों दिशाओं में दिग दिगंत हुआ .लोकेश की मृत्यु पर कोई शोक मनाने नहीं गया. कोई नेता, कोई अभिनेता, कोई विचारक, कोई मानवतावादी, कोई वामपंथी, कोई समाजवादी या फिर कोई भी वादी, किसी को भी लोकेश की मृत्यु में मनुष्यता की मृत्यु नहीं दिखाई दी.क्योंकि उसकी मृत्यु पर राजनीतिक, सामाजिक लाभ नहीं उठाया जा सकता था क्योंकि सवर्ण समाज उसकी मृत्यु पर कोई जाटों, गुर्जरों, दलितों की तरह विनाशक आन्दोनल नहीं कर सकता, शायद इसी लिएउसके मरने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि वह सवर्ण है.सवर्णों में एकजुटता नहीं है. इसीलिए उसकी मृत्यु का कोई मोल नहीं है. यह मामला लोगों ने जो अपने आप को बुद्धिजीवी, नेता, समाज सुधारक एवं मानवतावादी कहते हैं. उन्होंने लवकेश की आत्महत्या को जातिवादी चश्में से देखा . यह पूरी तरह जाति के दृष्टिकोण से देखा गया मामला है इसीलिए उसकी मृत्यु मूल्यहीन रही. नहीं तो वह भी रोहित वेमुला की तरह महीनों, 24 घंटे, दिन-रात मीडिया और नेताओं की जुबान पर त्राहि - त्राहि करता रहता, लखनऊ BNCET कालेज
के छात्र लोकेश के साथ दो अन्य छात्र भी पढ़ते थे. जिन्होंने कॉलेज की प्रताड़ना से तंग आकर कुछ ही दिनों में कॉलेज छोड़ दिया, किंतु लवकेश प्रताणना सहते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी क्योंकि उसे अपने किसान माता-पिता के दुख को दूर करने की जिम्मेदारी थी. उसने अपने माता-पिता से वादा किया था कि वह जल्द ही इंजीनियर बन कर अच्छा पैसा कमाएगा और अपने माता पिता के दुखो को दूर करेगा ,किंतु ऐसा हो न सका. आखिरकार उसने कॉलेज की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली. लवकेश के भाई ऋषिकेश ने बताया कि कॉलेज प्रशासन ने कई बार उससे नौकरी दिलाने के नाम पर पैसे मांगे .कुछ महीने पहले ही कॉलेज प्रशासन ने नौकरी दिलाने के नाम पर 5000 रूपये मांगे थे. कॉलेज प्रशासन ने कहा कि कॉलेज में नौकरी के लिए कंपनी आ रही है इसमें शामिल होने के लिए 5000 रूपये जमा करने होंगे. इस तरह किसी ना किसी बहाने कॉलेज प्रशासन ने कई बार पैसे मांगे. गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले लवकेश इस आर्थिक मांग से बेहद परेशान थे वह बार-बार अपनी किसान पिता को प्रताड़ित नहीं करना चाहता था अधिक आर्थिक दबाव न सह पाने के कारण ही लोकेश ने आत्महत्या कर ली. लवकेश के चचेरे भाई ऋषिकेश का कहना है कि लवकेश की मौत के बाद से उनकी माता सदमे में हैं और स्वास्थ्य इतना खराब हो गया है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. लोकेश की बहन अर्चना भी इस सदमें का शिकार हो गई और उन्हें भी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. लवकेश के किसान पिता ओम प्रकाश मिश्र की हालत भी बेहद दयनीय है. कर्ज लेकर के बेटे को पढ़ा रहे थे कर्ज का पैसा भी नहीं चुका सके और बेटा भी खो दिए. एक पिता का दर्द सिर्फ एक पिता ही जान सकता है. वह भी ऐसा पिता जिसनें अपने नौजवानपुत्र को खो दिया हो. इस घटना के मर्म को कोई भाषण देने वाला नेता या किसी विश्विद्यालय का प्राध्यापक किसी संकाय का अध्यक्ष जो मोटी तनख्वाह लेता है में मानवता पर बड़े बड़े भाषण देता है वह नहीं समझ सकता कि आखिर इस का जिम्मेदार कौन है ? क्या कोई केजरीवाल ,क्या कोई भी डी. राजा, क्या कोई राहुल गांधी, क्या कोई के सी त्यागी, क्या कोई मायावती, क्या कोई अखिलेश, क्या कोई विचारक, क्या कोई मानवतावादी, इस पर अपने लब खोलेगा ? क्या कोई उस किसान पिता को दिलाशा दिलाएगा ,कि हम आपके साथ हैं आप के बेटे को भी न्याय मिलेगा, क्या किसी मीडिया का तंबू बंबू उसके घर के सामने टिकेगा ? क्या कोई मीडिया की वोबी वैन उसके दरवाजे पर खड़ी होगी ? क्या कोई पत्रकार उसकी इस दुखद परिस्थिति में कोई लेख लिखेगा ? क्या कोई संपादक लवकेश मिश्रा पर संपादकीय लिखेगा ?क्या कोई बुद्धिजीवी उस पर ब्लॉग या कालम लिखेगा ? आज एक बड़ा प्रश्न है या यह सिर्फ इसलिए नहीं लिखा जाएगा लोकेश ब्राह्मण नाम जाति में उत्पन्न हुआ .उसके लिए उत्पन्न शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूं कि पैदा तो दलित होते हैं, पैदा तो पिछड़े होते हैं ,वह जाती से पिछड़े माने जाते हैं उनके लिए एक तीसरी आंख का मापदंड है ,उनके लिए चैनल हैं, उनके लिए संसद है, उनके लिए विधानसभा है, उनके लिए एक्टिविस्ट हैं, लेकिन जो समान शब्द का तगमा लेकर आया है, उत्पन्न हुआ है, उसे कोई संवेदना का , किसी की करुणा का कोई हक नहीं है .गम्भीरता से सोचना होगा अगर जातिगत बात ही है. सवर्णो को सोचना होगा. उन सवर्णो को धिक्कार है जो संसद में बैठे हैं, जो विधानसभा में बैठे हैं, जो बड़े-बड़े महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों में बैठे हैं,प्रसाशन में बैठे हैं, मोटी तनख्वाह लेते हैं और लच्छेदार भाषण देते हैं .जिनका अपना शासन - प्रशासन के गलियारे में प्रभाव है .उनमें जरा भी लाज, शर्म मनुष्यता या जो कुछ भी कहते हैं उन्हें लोकेश के लिए भी उतनी ही सिद्दत, उतनी ही जिम्मेदारी से आवाज उठानी चाहिए. क्योंकि सबसे पहले वह मनुष्य है, पीड़ित है और फिर पीड़ित को न्याय मिलना ही चाहिए .फिर वह किसी जाति ,धर्म, वर्ग ,कार्य क्षेत्र से हो यदि ऐसा नहीं होता है तो सारा कुछ ढोंग है और इस ढ़ोंग को तोड़ना होगा .यह हर किसी की जिम्मेदारी है जो स्वयं को जाति पंथ से ऊपर उठकर मनुष्य कहलाता है ,तो आइएलवकेश के लिए आवाज़ उठाएं जो लोग उसे महत्व नहीं देते, उसकी मृत्यु को महत्व नहीं देते, जिनके लिए लवकेश किसी दूसरी दुनिया का जीव है, उसके लिए जाति के नाम पर ही सही, जिनका जाति में विश्वास है, सवर्ण में विश्वास है जिन्हे गर्व है अपने सर्वण होने पर ,उन्हें तो निश्चित ही शर्म आनी चाहिए,औरयदि शर्म है तो उठो ,आवाज उठाओ और जो स्वयं को जाति धर्म पंथ से ऊपर मानते हैं .जिनका सिर्फ मनुष्यता में विश्वास है उन्हें तो सबसे पहले लवकेश के लिए पूरी शिद्दत, ताकत से आवाज उठानी चाहिए. आज ही उनके असली चरित्र और मनुष्यता की पहचान होगी. इससे अधिक कहना या लिखना मेरे लिए मूर्खता होगी .जिन्हें समझ है वह समझें, कुछ करें, नहीं तो फिर आगे आग लगेगी, जिसे किसी जाति का, कोई नेता, कोई विचाकर बुझा नहीं पाएगा.जो संसद में, विधान सभा में पिछड़े - पिछड़े चिल्ला रहें हैं.वे भला बतायेंगे कि वे कब अगड़े कहलायेगे. अरे भाई प्रधान मंत्री पिछड़ा, मुख्यमंत्री पिछड़ा कमिश्नर पिछड़ा ,अब और क्या लोगे या बना दिए जाओ या बन जाओ तो अगड़े मानोगे.सांसद, मंत्री होने के बाद भी पिछड़ा, दलित, शोषित चिल्लाने का मतलब वे मानसिक रूप से पिछड़े हैं.कुल मिलाकर आख़िरी सत्य भारत जातिवादी देश है.जाति के नाम पर सारा खेल और फिर जातिवाद का झूठा विरोध.ऐसा दोगलापन भारत में ही हो सकता है.
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