गुरुवार, 18 सितंबर 2025

ज़िन्दगी अब झर रही है



ज़िन्दगी अब झर रही है

चित्र धुँधले  दिख रहे हैं

और  कुछ  साथी हमारे

देख  हमको  हँस रहे हैं

 

जो भी साथी हँस रहे हैं

वो भी उतना झर गये हैं

कितने चश्में उनके बदले

याद कुछ ना रह गये हैं

 

ऐसी ही है सोच जग की

कहने  को  अपने पराएँ

दूसरों  पर  हँस  रहे जो

ढल  रहे उनके भी साए

 

खुद पे हँसने का न साहस

दूसरों पर  हँस  रहे  रहें हैं

छूटता   जा   रहा   जीवन

रोज़   थोड़ा   धँस  रहे  हैं  

 

दुःख में भी यदि हर्ष चाहो

हंसना खुद पे सीख लो तुम

दोष   औरों   में    देखो

दोष को ही  जीत लो तुम

 

पवन तिवारी

१८/०९/२०२५