बुधवार, 16 जुलाई 2025

सभी मेरे प्रश्नों के तुम ही थे हल



सभी  मेरे   प्रश्नों   के  तुम  ही  थे हल

तुममें ही अपना मुझे दिखता था कल

परिचित तो बहुत  एक अपने थे तुम

अपने ही  ने अपने से कर डाला छल

क्या  कहूँ सूख   गया जीवन का जल

 

एक ही क्षण में उसने बदला था दल

आघात के जैसा था एक - एक पल

छीना   भरोसे    ने   भरोसा    सारा   

गुम  हो  गया   जैसे   ही सारा  बल

क्या कहूँ सूख गया जीवन का जल

 

उसके ही सांचे   में  गया था मैं ढल

हिम होके उसकी ख़ातिर था गया मैं गल

फिर भी नहीं निभाया उसने था साथ

वैरी से मिलकर दिया था ऐसा फल

क्या कहूँ सूख गया जीवन का जल

 

मित्र  जिसे माना था निकला वो खल

आकाश  समझा  था  निकला सुतल

जीवन से शुभदा  का शब्द गया टल

मन कहता इस जग से चल जल्दी चल

क्या कहूँ सूख  गया  जीवन का जल

 

पवन तिवारी

१६/०७/२०२५

 

 

 


2 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन के यथार्थ दर्शाती कटु अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. जीवन के यथार्थ दर्शाती कटु अभिव्यक्ति सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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