शनिवार, 30 सितंबर 2023

ये भरोसा आस्था कैसे बनेगा


ये   भरोसा   आस्था   कैसे  बनेगा

तुम शची सा पुण्यवत कोई बंध दोगे

प्रेम  कुछ   दुष्यंत  जैसे भी हुए हैं  

तुम भी क्या वैसा कोई प्रबंध दोगे

 

याकि नाते  के  किसी  नेपथ्य में तुम

जगत को दीखता सहज अनुबंध दोगे

साथ  में  मेरे  जो  ये  तुम कर रहे हो

इसका क्या कुछ नाम या संबंध दोगे

 

यह  प्रणय  का  पथ  रहेगा उत्तरोत्तर

या कि पथ में दुःख के रिसते रंध्र दोगे

आत्मा  का  प्रिय सदन ये ही बदन है

इतना सा क्या इस बदन की गंध दोगे

 

पवन तिवारी

०७/०७/२०२३  

पीड़ा में भी खड़े हैं



पीड़ा में  भी  खड़े हैं

साहस के बल अड़े हैं

एक हाथ कट गया है

एक  हाथ  से लड़े हैं

 

कुछ खा के यूँ पड़े हैं

ज्यों  पेड़ की जड़े हैं

विष  से  भरे हुए ये

सुवरण  से ये घड़े हैं

 

कहने को  जो बड़े हैं

कई उनके भी धड़े हैं

पिट्ठूगिरी  है  प्यारी

सच वाले  सड़ रहे हैं

 

प्रतिभा लड़ेगी  कब तक

अंतिम है साँस तब तक

कुछ मृत्यु कुछ विजय ले

आये  हैं  किंतु अब तक

 

पवन तिवारी

२०/०६/२०२३   

मर रहे हैं ज़िन्दगी को रख हथेली



मर रहे हैं ज़िन्दगी  को रख हथेली

मृत्यु को कहता  सरल कैसी पहेली

पर्वतों सा धैर्य पर पत्थर सा लगता

झोपड़ों में  रह  रहा  कहता  हवेली

लगता बड़बोला कभी तो दार्शनिक है

गीत खुशियों के हूँ सुनता गा रहा है

 

दर्द  है,  दीवार,  दरवाजा  खड़ा  है

लाश सी है ज़िन्दगी फिर भी अड़ा है

कहता अब भी साँस मेरी चल रही है

आस की  लाठी लिए अब भी पड़ा है

जब कोई  उससे  अँधेरी बात कहता

हँस के कहता सूर्य का रथ आ रहा है

 

लग  रहा  है  पेड़  टूटी  पत्तियों सा

बात करता खिड़कियों से साथियों सा

पूछो  तो  ऐसे  बताता  भीड़  में है

मुस्कराता  खंडहर  में  वादियों  सा

है बड़ा विक्षिप्त  या  अचरज कहूँ मैं

जो भी  आये  उसपे जैसे छा रहा है


कुछ तो कहते हो  चुका बर्बाद है वो

वो सदा हँस  के  कहे आबाद है वो

हो रही चुकने की उसके घोषणा जब

लेटे - लेटे  कह  रहा  नाबाद है वो

आने वाला कल  उसे अद्भुत कहेगा

जैसा भी हो  काल उसको भा रहा है

 

पवन तिवारी

२७/०९/२०२३